काशीपुर। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत में कोरोना फैलने का कारण संक्रमण वाले देशो से आने वालों पर समय से रोक न लगाना, विदेश से आने वालो को शत-प्रतिशत क्वारंटाइन न कराया जाना तथा इन विदेशियों के सम्पर्कों की जांच करने में सरकारी मशीनरी की असफलता है। इसी का शिकार मरकज भी हुआ है।
परन्तु देश में कुछ लोगों व नेताओं तथा मीडिया कर्मियों की पूर्वाग्रह की नफरत फैलाने वाली सोच के चलते इसका जिम्मेदार दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज के बहाने देश के मुसलमानों को ठहराने का प्रयास किया जा रहा है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के उल्लंघन में कोरोना संक्रमितो के पहचान व आंकड़ों को भी भारत सरकार के अधिकारियो तक द्वारा शब्दों के जाल में उलझाकर प्रसारित किया जा रहा है। इस प्रसार के जाल में न केवल देश के अधिकतर निष्पक्ष गैर मुस्लिम फंस रहे है, बल्कि हजारों मुस्लिम भी जमातियों को ही इसके लिये जिम्मेदार मानने लगे है।
यह सच है कि कोरोना संक्रमण के समय लाक डाउन घोषित होने के बाद मरकज में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमो का उल्लंघन हुआ लेकिन इसके लिये जितने मरकज के प्रबंधन वाले लोग जिम्मेदार है, उतने ही एक दीवार की दूरी पर स्थित निजामुद्दीन थाने के अधिकारी तथा लाक डाउन पालन कराने को जिम्मेदार प्र्शासनिक अधिकारी भी जिम्मेदार है जिनके खिलाफ आज तक किसी कार्यवाही करने की खबर नहीं है। साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक इस प्रकार का लाक डाउन उल्लंघन सभी धर्मों के स्थानों में हुआ है। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जा रहा है लाक डाउन के बाद बड़ी संख्या में जमाती वहां मरकज में मौजूद रहे और अन्य धर्म स्थलों के समान 5 लोगों से अधिक के धार्मिक क्रियाकलाप पर रोक का पालन नहीं किया। लेकिन मरकज की ओर से कहा गया कि यह केवल मस्जिद ही नहीं है बल्कि वहां जमातियों के रहने की भी व्यवस्था है। साथ ही इन्हें निकालने की व्यवस्था करने को प्र्रशासन को कहा गया लेकिन उन्होंने इसके लिये कोई कार्यवाही नहीं की गयी। कुछ लोगों का मानना है कि इस स्थिति में भी मरकज खाली करके निजामुद्दीन थाने के अन्दर इन सब जमातियों को भेज दिया जाता और प्रशासन से कहा जाता कि वह इनकी व्यवस्था करें। लेकिन यह न तो व्यवहारिक ही था बल्कि यदि मार्च के अंत में मरकज से प्रशासन द्वारा निकाले गये 2165 जमातियो को लाक डाउन से पहले या बाद में निकाल कर देश विदेश भेज दिया जाता तो इससे देश भर में संक्रमण फैलने का खतरा और बढ़ जाता। अभी तो केवल मार्च से पहले के जमातियों व इनके सम्पर्कों को देश भर में ढूंढने में ही सरकारी मशीनरी की हालत खराब हुई है तब तो स्थिति और भी खराब होती और संक्रमितों की संख्या और भी बढ़ जाती। यदि इन्हें निजामुद्दीन थाने में भेज दिया जाता तो पुलिस कर्मी भी संक्रमित हो सकते थे और इनसे भी फिर बड़े स्तर पर संक्रमण फैलता। इसलिये जाने अनजाने ऐसा न होना अच्छा ही हुआ।
यह सभी मानते है कि कोरोना संक्रमण मूल रूप से चीन के वुहान से फैला और भारत में यह चीन व चीन से अन्य जिन देशों में यह फैला, उन देशों से आये विदेशियों ने फैलाया। यह भी स्पष्ट है कि मरकज में न तो वायरस बना औैर न ही जानबूझकर मरकज के लोगों ने किसी को संक्रमित किया। मरकज के लोग तो खुद विदेश से आये जमातियों के कारण संक्रमण के शिकार हुये। लेकिन यह जमाती विदेशों से आये कैसे और उन्हें विदेश से आने पर पहले क्वांरटीन क्यों नहीं किया। इसका सीधा जवाब है कि बिल्कुल वैसे ही जैसे अन्य विदेश से आने वालों पर रोक नहीं लगायी गयी औैर न ही क्वारंटीन किया गया अगर सरकार दूरदर्शिता दिखाते हुये तथा विदेश से आने वालों, जिनमें अधिकतर प्रभावशाली व अमीर लोग शामिल थे, पर पाबन्दी लगा देती औैर पहला केस 31 जनवरी 2020 को मिलने के बाद से ही सबकों 14 दिन क्वारंटीन करना सुनिश्चित कराती तो निश्चित रूप से न तो देश में संक्रमण फैलता और न मरकज में। इससे स्पष्ट प्रमाणित है कि मरकज भी कोरोना संक्रमण का सरकार की अदूरदर्शी व अमीरों व प्रभावशालियों को सुविधा देने वाली नीति का शिकार हुआ है।
यह सच है कि निजामुद्दीन मरकज से निकाले गये 2165 लोगों में से बड़ी संख्या में लोग संक्रमित मिले है। इसके अतिरिक्त जनवरी से मार्च तक देश भर में जमात में गये तथा इनके सम्पर्क में आये लोगों की जांच की गयी तो भी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भी देश में 70 प्रतिशत से अधिक का जमातियों से कोई सम्बन्ध नहीं मिला। जमातियो से सम्पर्क वाले केसों की बड़ी संख्या के कारण पैनल में प्रकाशित किये गये है।
किसी भी वायरस संक्रमण के पहले मरीजों के अध्ययन से उसके देश में फैलने का कारण पता लगाया जाता है। युगनिर्माता में प्रतिष्ठित वेबसाइट कोविड-19 इंडिया ओआरजी पर उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण करके पहले 100 केसों का संक्षिप्त विवरण तैय्यार किया है जिससे स्पष्ट प्रमाणित है कि विदेश से आये लोगों के कारण ही भारत में संक्रमण फैला औैर सरकार ने न तो मार्च के अंतिम सप्ताह तक विदेश से आने वालों पर कोई रोक लगायी औैर न ही इनको 14 दिन का क्वारंटीन ही सुनिश्चित हो पाया। इसीलिये यह संक्रमण फैलाते रहे।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि 80 प्रतिशत केसों में कोई लक्षण नहीं नजर आ रहे हैं ऐसी स्थिति में संक्रमण की वास्तविकता व आंकड़े जानने का एकमात्र तरीका जांच ही है जो केवल जमातियों तथा उनके सम्पर्कों की ही हुई है, बाकी किसी वर्ग की नहीं। 25 दिन से अधिक के लॉकडाउन के बाद भी गैर जमाती क्षेत्रों में संक्रमण के केस बड़ी संख्या में सामने आने से यह स्पष्ट है कि अन्य किसी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संक्रमण मौजूद था। जिसमें से बड़ी संख्या में मरीज बिना लक्ष्ण सामने आये लॉकडाउन की अवधि में ठीक हो गये हैं जिनकी गिनती कभी सामने नहीं आयेगी। इसीलिये यह कहना कि 30 प्रतिशत केस केवल जमातियों के है, गलत है। इसके साथ अगर जांचों की कुल संख्या के आंकड़े भी दिये जाये तो वास्तविक्ता का पता चलेगा। जिनकी जांच ही नहीं हुई उनके आंकड़े कैसे सामने आयंगे। इसलिये यह सरकारी दुष्पचार भी कहा जा सकता है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों की जानकारी इससे भी स्पष्ट होती है कि उनके प्रवक्ता ने यह नहीं बताया कि अधिकतर अधिक संक्रमित राज्यों में जमाती कनैक्शन वाले केस नाममात्र के है। इसमें 18 अप्रैल को जिसमें जमाती कनैक्शन का कुछ राज्यों व देश का प्रतिशत बताया गया था, सार्वधिक 3648 केस महाराष्ट्र में थे जिसमें कोई जमाती कनैक्शन नहीं बताया गया, इसके अतिरिक्त संक्रमितों की संख्या 4 अंकों वाले राज्यों मध्य प्रदेश में 1365, राजस्थान में 1282, गुजरात में 1379 में कोई जमाती कनैक्शन नहीं बताया गया जबकि केवल दिल्ली जहां मरकज स्थित है, में ही 63 प्रतिशत केस बताये गये जबकि कुल 1893 केस तब तक मिले थे। यहां भी 37 प्रतिशत केसों का जमातियों से कोई संबंध नहीं मिला है।
बड़ी संख्या में जमाती केसों का कनैक्शन एैसे दर्शाया गया
1- केवल मरकज में मिले लोगों व उनके सम्पर्क वालों को ही नहीं बल्कि देश में जनवरी से अप्रैल तक किसी भी जमात में गये लोगों तथा केवल मरकज ही नहीं उसके आसपास के क्षेत्रों में मिले लोगों के सम्पर्क वालों कोे भी जमाती कनैक्शन वाले केस दर्शा दिये गये है। इसमें विभिन्न हिन्दू भी शामिल है।
2- उक्त के परिवार वालों तथा सम्पर्क वालों को भी जमाती कनैक्शन केस दर्शा दिया था।
3- जमाती कनैक्शन केसों की अधिक संख्या होने का एक प्रमुख कारण उक्त कनैक्शन वाले सभी केसों व उसके सम्पर्क तथा उनके क्षेत्रों के अत्याधिक जांचे करना है जबकि अन्य क्षेत्रों में नाम मात्र की जांच हुई है।